हे निम्बार्क दीन बंधु सुन पुकार मेरी ।
पतितन मे पतित नाथ शरण आयो तेरी..... || 1 ||
मात-तात भगिनी भ्रात, परिजन समुदाई ।
सब ही सम्बन्ध त्यागी, आयो शरणाई..... || 2 ||
काम क्रोध लोभ मोह दावानल भारी...
निसिदिन हो जरो नाथ, लिजिये उबारी..... || 3 ||
अम्बरीष भक्त जानि, रक्षा करि धाई ।
तैसे ही निज दास जानि, राखो सरनाई..... || 4 ||
भक्तव्छल नाम नाथ, वेदिन मे गायो ।
श्री भट्ट तव चरन परस, अभय दान पायो..... || 5 ||
हे निम्बार्क दीन बंधु सुन पुकार मेरी ।
पतितन मे पतित नाथ शरण आयो तेरी.....